भगवती प्र. डोभाल
wildlife : वन्य जीव कानून को ज्यादा सख्त बनाना होगा
wildlife केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन वन्य जीवन संरक्षण संशोधन विधेयक राज्य सभा के पटल पर रखा।
wildlife इससे पूर्व यह विधेयक मानसून सत्र में 3 अगस्त को लोक सभा में पारित कर दिया गया था। इस बिल का उद्देश्य वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय: प्रजातियों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन के बेहतर कार्यान्वयन के लिए एक प्रयास है।
wildlife विधेयक एक ऐसे प्रावधान के कारण से विवादास्पद था, जिसमें हाथियों का व्यापार करना संभव बना दिया गया था। इस कारण सदन में भारी विरोध के कारण उस प्रावधान को हटा दिया गया।
wildlife विधेयक पेश करते हुए यादव ने कहा कि जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय: होने वाली प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन सीआईटीईएस के तहत भारत के दायित्वों को पूरा करने के लिए संशोधन पेश किया गया है, क्योंकि भारत सीआईटीईएस का सदस्य है। जिस गति से वन्य जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों का नुकसान हो रहा है, यह समझौता उसी के पालन के लिए संशोधित किया गया था।
भारत में वन्य जीवों के अवैध व्यापार के लिए अलग नियमों का प्रावधान किया गया है-जैसा सीमा शुल्क अधिनियम, एक्जिम नीति, विदेश व्यापार महानिदेशालय और वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम के तहत नियंत्रित किया जाता है।
सीआईटीईएस ने वन्य जीवों के अवैध व्यापार के लिए अलग नियम का प्रावधान बनाया। यूपीए ने सीआईटीईएस के तहत अपने आश्वासनों को पूरा नहीं किया। लेकिन हम अभी इसे पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। लोक सभा ने इसे पारित कर दिया है।
यादव ने कहा कि अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सीआईटीईएस के परिशिष्ट-2 से परिशिष्ट-1 में लाल मुकुट वाले कछुवे और लीथ के सॉफ्ट शेल कछुवे को स्थानांतरित करने के भारत के प्रस्ताव को पनामा में सीआईटीईएस की 19वीं बैठक में पार्टयिों के सम्मेलन सीवोपी द्वारा अपनाया गया है।
उन्होंने कहा कि सीआईटीईएस ने छोटे कारीगरों को राहत देते हुए 10 किग्रा. तक की शीशम की लकड़ी में व्यापार पर कैप को मुक्त करने की अनुमति दी है।
लोक सभा में पारित विधेयक में वन्य जीवों के लिए राज्य बोडरे की स्थायी समितियों के गठन से संबंधित प्रावधान बनाया गया है। विशेषज्ञों ने कहा है कि इस प्रावधान से राज्य स्तर पर बुनियादी ढांचा, परियोजनाओं के लिए वन्य जीवन मंजूरी की प्रक्रिया को आसान बनाने की संभावना है, क्योंकि पैनल में ज्यादातर आधिकारिक सदस्य शामिल होंगे।
अप्रैल में कांग्रेस नेता जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति ने केंद्र से बंदी हाथियों के परिवहन के प्रावधानों का स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया था और इसकी कुछ सिफारिशों को केंद्र ने स्वीकार कर लिया था। तत्कालीन संप्रग सरकार ने 2005 में इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आश्वासन दिया था, लेकिन उसे पूरा नहीं किया।
यह सरकार इस आश्वासन को पूरा करने के साथ ही 1972 के कानून में संशोधन करना भी चाहती है। इस पर कांग्रेस के विवेक के. तन्खा ने कहा कि वन्य जीवों पर कानून बनाने का अधिकार पहले राज्यों के पास था। 1970 के दशक में संविधान संशोधन के बाद इस विषय को समवर्ती सूची में डाल दिया गया था। बिल का सेक्शन 43 इजाजत देता है कि हाथियों को एक जगह से दूसरी जगह धार्मिंक और ‘अन्य किसी भी कार्यों’ के लिए ले जा जाया जा सकता है, जो कुछ स्पष्ट नहीं करता।
बिल में यह बात स्पष्ट हो कि तीसरी पार्टी की शिकायत पर लुप्त हो रही प्रजातियों को गैर-कानूनी ढंग से बंदी बनाए जाने पर रोक लगे। इसी बात पर विपक्षी दलों ने सदन में बिल का विरोध किया और जोर दिया कि सरकार संघीय ढांचे की व्यवस्था को तोडऩे का प्रयास कर रही है।
देखा जाए तो देश के 20 फीसद भाग में वन हैं, वनों की सुरक्षा जरूरी है।
इसके लिए स्थानीय लोगों की भूमिका बहुत आवश्यक है। उनके जंगल में घुसने के अधिकार को नहीं रोका जाना चाहिए। वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा में आदिवासियों का विशेष योगदान रहा है।
उन्होंने ही वन संपदा को सुरक्षित रखने का प्रयास किया है। उनको वनों से बेदखल कर बाहरी व्यक्ति और व्यावसायिक हाथों के सुपुर्द करना पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है।
वनों के कटान का सिलसिला ब्रिटिश काल से ही उनके द्वारा बनाए कानूनों से शुरू हो गया था। इसी कारण वनों की अंधाधुंध कटाई से आज बहुत सारे वन समाप्त हो चुके हैं, और उस क्षेत्र में पैदा होने वाली वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का इस धरती से पलायन हो गया है।
उनका सरंक्षण ऐसे कानून और बिल नहीं कर सकते। इसलिए सोच-समझ कर ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जो सही मायनों में प्रकृति का संरक्षण करने में कारगर हो सके।
आज सरकार जो कानून बनाने जा रही है, वह पर्याप्त नहीं हैं। मनुष्य के लिए प्राण वायु से लेकर इको सिस्टम की सख्त जरूरत है। सभी तरह के जीव-जंतुओं का अस्तित्व बनाए रखने का प्रयास जरूरी है, ताकि धरती हरी-भरी और उसका संतुलित अनुपात कायम रह सके।
ऐसा न होने से मौसम का बदलाव हर किसी को इस धरती से उखाड़ फेंक सकता है।