-सुभाष मिश्र
एक साल पहले जब कोरोना संक्रमण फैला था तो लोगों को कोरोना से कम डर लगा, किन्तु कोरोना के नाम पर की गई तालाबंदी, लॉकडाउन, सख्ती से लोग बहुत डर गए थे। सारी आर्थिक, सामाजिक गतिविधियां रूक सी गई थी। बड़ी संख्या में लोग ने शहरों से गांवों की ओर जान बचाने की गरज से पलायन किया था। लोगों के सामने खाने-पीने के लाले पड़ गये थे। धीरे-धीरे तालाबंदी हटी और उससे ज्यादा तेजी से कोरोना का भय हटा। लोगों ने कोरोना संबंधी समस्या, समझाईश, गाइड लाइन की मनमाने ढंग से अनदेखी की। देश के रहनुमाओं ने अपनी छाती चौड़ी करके बताया कि हमारा भारत महान है। हमने कोरोना को रोक लिया है। हमारे सामने अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस जैसे देश फेल है। अभी ठीक से एक साल भी नहीं गुजरा था कि कोरोना संक्रमण अपनी दूसरी लहर में इतने वेग के साथ आया की अब लोगों को लॉकडाउन से नहीं कोरोना से डर लग रहा है। कोरोना का वर्तमान काल बहुत ही डरावना है। मौजूदा आंकड़ों पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि पिछले साल इन्हीं दिनों हमारे देश में प्रतिदिन कोरोना से पीडि़तों की संख्या की तुलना में आज जो संख्या एक लाख 07 हजार हो गई, जो कई गुना ज्यादा है।
कोरोना संक्रमण के चलते बहुत सारे लोगों ने धीरे-धीरे घर में रहना सीख लिया है। कोरोना संक्रमण ने लोगों के बीच घर में रहने वाले लोग जिनके पास किसी भी तरह के इलेक्ट्रानिक डिवाइस, संसाधन थे, उन्होंने नेट कनेक्शन के जरिये सिनेमा हॉल की बजाय घर बैठे-बैठे फिल्म देखना, फिल्म प्रोग्राम बनाना सीख लिया। लोग अक्सर बशीर बद्र था यह शेर सुनाना भी नहीं भूलते है-
कोई हाथ भी ना मिलायेगा
जो गले मिलोगे , तपाक से
ये नये मिजाज का शहर है
जरा फासलों से मिला करो
देश में मंगलवार को कोरोना वायरस संक्रमण के 1.07 लाख से अधिक मामले सामने आए है। एक दिन की अब तक की सर्वाधिक संख्या है। इस बीच, केंद्र सरकार ने आगाह किया कि अगले चार सप्ताह बेहद महत्वपूर्ण है और महामारी की दूसरी लहर को रोकने में लोगों को सहयोग करना चाहिए।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों ने मास्क लगाने जैसे एहतियात को तिलांजलि दे दी है। देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, देश में कोविड-19 पिछले साल के मुकाबले इस साल तेजी से फैल रहा है।
देश में रविवार को 24 घंटे में संक्रमण के 1,03,558 मामले सामने आए थे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों को टीका लेने की अनुमति देनी चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी टीकाकरण के लिए उम्र सीमा में ढील देने का अनुरोध किया है।
बढ़ते कोरोना संकट को लेकर महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने महाराष्ट्र में वैक्सीन की कमी को लेकर केंद्र सरकार से बात की। महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र की गाइडलाइंस का अब तक अच्छी तरह से पालन किया है। दिन ब दिन राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है और टीके कम पड़ रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार ने 25 साल से ऊपर सभी को कोरोना का टीका लगवाने की इजाज़त माँगी है।
उत्तर प्रदेश की सरकार 18 से 45 साल के लोगों का टीकाकरण करने की योजना बना रही है। उन युवाओं को भी कोविड-19 वैक्सीन लेने की अनुमति देनी चाहिए, खासकर जिन्हें टाइप-1 डायबिटीज, उच्च रक्तचाप की समस्या या दिल की बीमारी हो। साथ ही ऑटो-इम्यून बीमारियों वाले रोगियों का भी टीकाकरण करने की अनुमति दी जा सकती है।
इस बीच, कर्नाटक सरकार ने पड़ोसी राज्य में कोविद -19 मामलों में वृद्धि के मद्देनजर शहर की सीमा में सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी। प्रशासन ने बेंगलुरु शहर की सीमा में आवासीय परिसरों में स्विमिंग पूल, जिम, पार्टी हॉल के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
कोरोना वायरस को लेकर देश में अजब हाल है, सब को पता है कि कोरोना की दूसरी लहर कितनी प्रभावी है लेकिन फिर भी राज्य और केंद्र स्तर पर इसको लेकर ना केवल तालमेल खऱाब है, बल्कि इस युद्ध में सभी अलग-अलग लड़ते दिख रहे हैं, नाकि एकजुट होकर। इसका एक बड़ा कारण है और वो यह कि कोई भी दल ऐसा फैसला नहीं लेना चाहता जो जनता को नापसंद हो। यानि कड़े फैसले लेने में सबको हिचकिचाहट हो रही है। मार्च-अप्रैल में 2020 जब कड़ा फैसला लिया था। सभी विपक्षी दलों ने इसका स्वागत किया था। सभी का मानना था कि लॉकडाउन ज़रूरी है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया पक्ष और विपक्ष अलग होने लगे। पहले विपक्ष ने कहा कि लॉकडाउन लगाने का फैसला राज्य सरकारों के पास होना चाहिए और दिल्ली से बैठ कर सभी फैसले नहीं लिए जा सकते हैं।
केंद्र सरकार ने अपने पाले की बॉल राज्य सरकारों के पाले में डाल दी। राज्य सरकारें ने यह जिम्मेदारी कलेक्टर को दे दी। कलेक्टर ने यह जिम्मेदारी एसडीएम, तहसीलदार को। इस तरह कोरोना संक्रमण का विक्रेन्द्रीयकरण हो गया। जहां जैसा अफसर वहां वैसा क्रियान्वयन।
इस बार प्रशासन और सरकार ने अपनी ओर से लॉकडाउन लगाने में उतनी रूचि नहीं दिखाई जितनी की पिछले बार थी। शासन-प्रशासन कोरोना नियमों का पालन और समझाईश के भरोसे लोगों को रोकना चाहता था, किन्तु धीरे-धीरे जब यह बेफ्रिक जनसैलाब नहीं रूका और कोरोना ने बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया तो अब जनता के बीच से आवाजे आने लगी कि लॉकडाउन लगाना जरूरी है। अलग-अलग फोरम से लॉकडाउन लगाने के पक्ष में आवाजे बुलंद होने लगी। सरकार भी सबकी बात आराम से सुनकर टुकड़े-टुकड़े में लॉकडाउन लगाने के लिए कलेक्टरों के कंधों पर बंदूक रखकर चला रही है। दरअसल पिछली बार लॉकडाउन के चलते जिस तरह का नुकसान हुआ और कोरोना निमंत्रण को लेकर लापरवाही बरती गई उससे लोगों का मोहभंग हुआ।
निंदा फाजली का एक शेर
समय की नजाकत को ध्यान में रखकर
नयी-नयी आंखें हो तो हर मंजर अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन अब घर अच्छा लगता है
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है।
