बिदाः 2020
इतनी दुर्गत
अन्याय सतत
आगत विगत अनागत
मत-सम्मत
सब आहत
जग क्षत-विक्षत
डूबता रहा देश
ऊबता रहा काल
घेरता रहा जीवन को
कपट कुशल
विश्वतरंगजाल
क्या भल-अनभल
जीवन को दल
दुर्भाग्य प्रबल
केवल छल, केवल छल
भर पायेगा अपकर्ष
नये वर्ष में हर्ष?
दो हजार ईसवी सन बीसा
दारुण दुख दे बीत रहा
हे! ईसा
प्रणाम
रश्मियों से जल उठाते लोकलोचन
सूर्य को प्रणाम
शून्य में सागर उठाये लोकसर्जक
मेघ को प्रणाम
जल को पालना झुलाते लोकप्राण
वायु को प्रणाम
सब को क्षमा करती लोकनेत्री
वसुन्धरा को प्रणाम
शब्द में डूबे नील-नीरव लोकनायक
गगन को प्रणाम
रूप को प्रणाम
रस को प्रणाम
स्पर्श को प्रणाम
गंध को प्रणाम
शब्द को प्रणाम