इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग धर्म को मानने वाले जोड़े की शादी को लेकर आ रही व्यवहारिक कठिनाई और कथित विरोध को देखते हुए स्पेशल मैरिज एक्ट में एक माह का नोटिस मैरिज कोर्ट के बाहर नाम, पते फोटो सहित इश्तिहार पर रोक लगाते हुए कहा है कि इस तरह के इकबाले मोहब्बत को इश्तिहार के जरिये सार्वजनिक करना उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
बशीर बद्र साहब का एक मशहूर शेर है-
मुझे इश्तिहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना जो सुना नहीं वो कहा करो।
दरअसल, जो लोग आपस में मोहब्बत करते हैं वे अपनी मोहब्बत का इजहार इश्तहार के रुप में नहीं करना चाहते।
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।
ये बात प्यार पर पहरेदारी करने वालों को शायद ही समझ में आती है, जैसे ही उन्हें पता चलता है कि दो अलग-अलग जाति धर्म के लोग बिना जातपात ऊंच-नीच देखे शादी कर रहे हैं तो ये धर्म जाति के कथित ठेकेदारों को नागवार गुजरता है। वे कभी विजातीय विवाह के नाम पर तो कभी लव जिहाद के नाम पर मोहब्बत करने वालों को प्रताडि़त करते हैं। अभी हाल ही में लव जिहाद के नाम पर अलग-अलग राज्यों में धर्म परिवर्तन के नाम पर कानून भी लाकर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून और कथित धर्म परिवर्तन के नाम पर कुछ जोड़ों को प्रताडि़त भी किया गया। प्यार करने वालों पर पहरे सदियों से लगते रहे हैं, पर उनका दिल है कि मानता नहीं। अब वे लोग चट मंगनी पट ब्याह कर सकेंगे।
स्पेशल मैरिज एक्ट के बावजूद इस तरह के जोड़े जो एक जाति, धर्म के नहीं है वे अपनी आइडेंटिटी छिपाने के लिए पहले आर्य समाज, मस्जिद और अन्य स्थानों पर जहां शादियां होती है, पहले उन्हें अपना धर्म परिवर्तन करना होता है फिर शादी।
स्पेशल मैरिज एक्ट में किसी भी धर्म के मानने वाले जोड़े को ना तो अपना धर्म बदलना है ना ही नाम। उन्हें कानून ने यह इजाजत दी है कि वे यदि वयस्क हैं और सहमत हैं तो वे शादी कर सकते हैं। धर्म की जकडऩ, घर और समाज का परिवेश और बंधन कारण बहुत से जोड़े चाहकर भी प्रेम होते हुए भी रिवाज के बंधन में नहीं बंध पाते हैं।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने बुधवार को स्पेशल मैरेज ऐक्ट में बड़ा संशोधन करते हुए आदेश दिया है कि विशेष विवाह एक्ट के तहत शादी करने वाले कपल को 30 दिन के पूर्व नोटिस की जरूरत नहीं है। साफिया सुल्ताना नाम की लड़की ने धर्मांतरण कर एक हिंदू लड़के से शादी की है। लड़की के परिवार वाले इस शादी के खिलाफ है। इसलिए उन्होंने लड़की को अपने घर पर अवैध तरीके से बंदी बनाकर रखा है। लड़के के पिता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई। इसके बाद कोर्ट ने लड़की और उसके पिता को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया। कोर्ट में पेश होने के बाद लड़की के पिता ने कहा कि वह पहले इस शादी के खिलाफ थे, लेकिन अब उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है। सुनवाई को दौरान लड़की ने अदालत के सामने अपनी समस्या रखते हुए कहा कि उसने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी इसलिए नहीं कि क्योंकि इस कानून में एक प्रावधान है कि शादी के बाद 30 दिन का एक नोटिस जारी किया जाएगा। इसके तहत अगर किसी को विवाह से आपत्ति है तो वह ऑब्जेक्शन कर सकता है।
लड़की ने बताया कि इस प्रावधान के कारण लोग अक्सर मंदिर या मस्जिद में शादी कर लेते हैं। कोर्ट ने लड़की की बात को संज्ञान में लिया और स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 6 और 7 में संशोधन करते हुए फैसला सुनाया कि अब इस तरह के नियम की आवश्यकता नहीं है। ये नियम व्यक्ति की निजता के अधिकार का हनन है।
हमारे देश में ज़्यादातर शादियां अलग-अलग धर्मों के क़ानून और पर्सनल लॉ के तहत होती है, इसके लिए दोनों दोनों का उसी धर्म, जाति का होना ज़रूरी है। यानी अगर दो अलग-अलग धर्म के लोगों को आपस में शादी करनी हो तो उनमें से एक को धर्म बदलना होगा। पर हर व्यक्ति मोहब्बत के लिए अपना धर्म बदलना चाहे, ये ज़रूरी नहीं है। इसी समस्या का हल ढूंढने के लिए संसद ने स्पेशल मैरिज एक्ट पारित किया था जिसके तहत अलग-अलग धर्म के मर्द और औरत बिना धर्म बदले कानूनन शादी कर सकते हैं। इसके विपरीत साधारण कोर्ट मैरिज में मर्द और औरत अपने फोटो, एड्रेस प्रूफ, आईडी प्रूफ और गवाह को साथ ले जाएं तो मैरिज सर्टिफि़केट उसी दिन मिल जाता है। स्पेशल मैरिज एक्ट में वक्त लगता है। इसके तहत की जा रही कोर्ट मैरिज में जि़ले के मैरिज अफ़सर यानी एसडीएम को ये सारे दस्तावेज़ जमा किए जाते हैं, जिसके बाद वो एक नोटिस तैयार करते हैं। इस नोटिस में साफ़-साफ़ लिखा होता है कि फ़लां मर्द, फ़लां औरत से शादी करना चाहते हैं और किसी को इसमें आपत्ति हो तो 30 दिन के अंदर मैरिज अफ़सर को सूचित करें।
इस नोटिस का मक़सद ये है कि शादी करने वाला मर्द या औरत कोई झूठ या फऱेब के बल पर शादी ना कर पाए और ऐसा कुछ हो तो एक महीने में सामने आ जाए। हालांकि, हिंदू मैरिज एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। ये नोटिस 30 दिन तक कोर्ट के परिसर में लगा रहता है। स्पेशल मैरिज ेक्ट के तहत शादी तभी मुकम्मल मानी जाती है जब 30 दिन के दरम्यान कोई व्यक्ति किसी तरह की शिकायत ना करे। कोर्ट में आने वाले बहुत से लोग मौका देखकर चौंका मार देते हैं। उन्हे बात का बतंगड़ बनाने में मजा भी आता है और थोड़ा बहुत नाम भी हो जाता है। यही लोग वैलेंटाइन डे और अन्य अवसरों पर प्यार करने वाले जोड़ों के साथ मारपीट करके कथित धर्मजाति की रक्षा करते हैं।
इस बीच बहुत सी सरकारों ने अलग-अलग धर्म के बीच होने वाली शादियों को रोकने के लिए कानून पारित किये। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पारित लव जिहाद कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता की तरफ से असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है। गौरतरलब है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार द्वारा पारित लव जिहाद कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही नोटिस जारी किया था।
इस मुद्दे ने तूल तब पकड़ा जब केरल हाईकोर्ट ने 25 मई को हिंदू महिला अखिला अशोकन की शादी को रद्द कर दिया था। निकाह से पहले अखिला ने धर्म परिवर्तन करके अपना नाम हादिया रख लिया था, जिसके खिलाफ अखिला उर्फ हादिया के माता-पिता ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
मध्यप्रदेश में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2020 में कुछ मामलों में दस साल की जेल के दंड का प्रावधान किया गया है। इसमें कुछ प्रावधान उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा जारी किये गये अध्यादेश के समान है, जो धोखाधड़ी से धर्मांतरण के खिलाफ है। लव जिहाद दो शब्दों से मिलकर बना है। अंग्रेजी भाषा का शब्द लव यानि प्यार, मोहब्बत या इश्क और अरबी भाषा का शब्द जिहाद। जिसका मतलब होता है किसी मकसद को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देना। जब एक धर्म विशेष को मानने वाले दूसरे धर्म की लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवा देते हैं तो इस पूरी प्रक्रिया को लव जिहाद का नाम दिया जाता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भले ही दो प्यार करने वालों की निजता का सम्मान करके चट मंगनी, पट ब्याह की इजाजत दे दी हो, किन्तु देश के अलग-अलग राज्यों में अभी भी प्यार पर सख्त पहरेदारी है और यदि यह प्यार दो अलग-अलग संप्रदाय के लकड़े-लड़कियों के बीच है तो फिर ये एक राजनीतिक और धार्मिक मसला भी बन सकता है। वैसे भी कोरोना काल में देह की दूरी को सोशल डिस्टेंसिंग नाम देकर लोगों को दो गज की दूरी पर वैसे ही खड़ा कर दिया गया है। बशीर बद्र साहब कहते हैं-
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से।
ये नये मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो