म्यूनिख की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलगॉय के पहाड़ों में यही पता करने में लगे हैं. म्यूनिख जर्मनी के दक्षिणी प्रांत बवेरिया की राजधानी है और ये इलाका आल्प्स पहाड़ों से लगा है. होखफोगेल इलाके में करिब 2600 मीटर ऊंची चोटी है जहां पिछले सालों में नियमित रूप से भूस्खलन होता रहा है. प्रो. मिषाएल क्राउटब्लाटर की टीम पहाड़ी में आ रही दरारों को जांचने में लगे हैं. आल्प्स की पहाड़ियों में बस्तियां तो हैं ही पहाड़ी रास्तों में ट्रेकिंग के रास्ते भी हैं जहां हर साल हजारों सैलानी ट्रेकिंग करने के लिए और छुट्टियां बिताने जाते हैं. ऐसे में शिलास्खलन से जानमाल को बहुत ही नुकसान हो सकता है. अगर पहाड़ों पर नजर रखी जाए तो अक्सर ये संभावना दिखती है कि कोई पहाड़ गिरेगा, लेकिन कब, इसका अंदाजा नहीं होता.
म्यूनिख के टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रो. मिषाएल क्राउटब्लाटर 2004 से प्राकृतिक खतरों, पहाड़ी चोटियों पर भूस्खलन और पैर्माफ्रॉस्ट सिस्टम पर काम कर रहे हैं. वे अस्थिर पहाड़ों का पता कर वहां भूस्खलन की संभावना की भविष्यवाणी का सिस्टम तैयार कर रहे हैं.
मौसम में बदलाव का असर पहाड़ों की हलचल पर भी हो रहा है. पैर्माफ्रॉस्ट के गलने, चट्टानों के टूटने और भूस्खलन से कीचड़ के नीचे आने से पहाड़ी इलाकों में खतरे बढ़ रहे हैं. आल्प्स का इलाका भी इसमें अपवाद नहीं है. अपने शोध में प्रो. क्राउटब्लाटर आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और फील्डवर्क तथा लैब की परीक्षणों को मिलाकर एक निगरानी व्यवस्था बनाने का प्रयास कर रहे हैं. वे बताते हैं, हमारी इसमें दिलचस्पी है कि आखिरी वक्त तक देखें कि भविष्यवाणी कहां तक सही साबित होती है. क्या हम तीन दिन पहले इसके बारे में बता सकते हैं?
एक फील्डवर्क के दौरान प्रो. क्राउटब्लाटर की टीम ने पाया कि पहाड़ के दक्षिणी भाग का बड़ा हिस्सा टूट कर 1000 मीटर तक नीचे गिर सकता है. पहाड़ी चट्टान में दरारें दिख रही हैं. कुछ तो 100 मीटर से ज्यादा लंबी हैं. इतनी बड़ी कि उसमें ट्रैक्टर भी समा जाए. क्राउटब्लाटर के यंत्रों से पता चलता है कि हर दिन दरारें 0.4 मिलीमीटर की रफ्तार से बढ़ रही है. सुनने में भले कम लगे लेकिन पहाड़ के लिए ये बहुत ही बड़ा है. मिषाएल क्राउटब्लाटर और उनकी टीम ने उस जगह पर मेजरमेंट इंस्ट्रूमेंट लगा दिया है. बीच बीच में उनकी जांच करनी होती है और जरूरत पड़ने पर मरम्मत भी.
पहाड़ों में निगरानी व्यवस्था लगाने की राह में बाधाएं भी हैं. एक तो माप यंत्रों और सेंसर को लगाने के लिए पहाड़ों पर चढ़ना पड़ता है. टीम के सदस्यों को पर्वतारोहण का अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे मुश्किल जगहों पर पहुंच सकते हैं और मापने वाले यंत्र लगा सकते हैं. यहां लगाए जाने वाले सेंसर बहुत है संवेदनशील हैं और वे मिलीमीटर के सौंवे हिस्से तक को रजिस्टर करते हैं और इसकी सूचना नीचे तक पहुंचाते हैं जहां उनका आकलन किया जाता है. मिषाएल क्राउटब्लाटर बताते हैं कि कभी कभी तो बिजली गिरती है और वह यंत्रों को नष्ट कर देती है. फिर उसे ठीक करने का काम भी होता है. दरारों को मापने के लिए दूरी मापने वाला यंत्र लगाया जाता है जो दरार में हर बदलाव को मापता है और उसकी उसी समय सूचना देता है.
ऐसी जगहों पर अगर सारी दरारें एक साथ खुल जाएं तो वैज्ञानिकों को डर है कि लाखों घनमीटर चट्टानें घाटी में गिरेंगी. इससे निकलने वाली धूल इलाके में घंटों रहेगी और चट्टानें भी लंबे समय तक टूटती रहेंगी. शोर तो होगा ही, धूलों का गुबार पूरे इलाके में दिखेगा और सारे इलाके को धूल में भर देगा.
तीन साल पहले स्विट्जरलैंड के ग्राउबुंडेन इलाके में पिज चेंगालो में पहाड़ टूटा था. 3369 मीटर की ऊंचाई वाली चोटी से चट्टान के टूटने से कुल मिलाकर 40 लाख घनमीटर चट्टानें नीचे घाटी में गिरी थीं. एक गांव को खाली कराना पड़ा था. दुर्घटना में आठ पर्वतारोहियों को चट्टानों ने अपनी चपेट में ले लिया था, उनका अब तक पता नहीं चला है. उसके बाद हुआ भूस्खलन कीचड़ के साथ नीचे आया और बोंडो कस्बे को तहस नहस कर गया. पहाड़ के गिरने पर जान माल के नुकसान का डर तो बना ही रहता है.
प्रो. क्राउटब्लाटर की टीम को अपनी जांच के दौरान लगता है कि अगर पहाड़ का दक्षिणी हिस्सा गिरा तो पहाड़ के दूसरे हिस्से में स्थित अलगौय के इलाके पर भी असर होगा. यहां कोई रिहायशी इलाका तो नहीं है, लेकिन यहां से होकर ट्रेकिंग का एक मशहूर रास्ता गुजरता है. भूविज्ञानी मिषाएल डीत्से कहते हैं, „अगर चट्टान वहां से एकबारगी तेजी से गिरता है, तो यहां स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी और फिर और चट्टानों के गिरने की संभावना होगी." दरार मापने के लिए वे ड्रोन का भी सहारा लेते हैं ताकि उन तस्वीरों से दरार का अंदाजा लगाया जा सके. ड्रोन से ली गई तस्वीरों की मदद से दरार का थ्रीडी ग्राफिक तैयार होता है. इस तरह दरार को सेंटीमीटर के दायरे में देखा जा सकता है. इस घटना का इस्तेमाल निगरानी के उपकरणों को टेस्ट करने के लिए भी किया जा रहा है.
भूविज्ञानियों का कहना है कि पहाड़ों में भूस्खलन को तकनीकी मदद से रोका नहीं जा सकता है. बचाव के लिए उनके बारे में जानना जरूरी है और जो इलाके खतरनाक हैं, वहां से लोगों को हटाना ही सबसे अच्छा उपाय है. खतरे वाले इलाकों को जानने के लिए निगरानी सिस्टम जरूरी है. 2017 में स्विट्जरलैंड में बोंडो में लोगों को कुछ नहीं हुआ क्योंकि समय रहते ही वहां के करीब 100 निवासियों को हटा लिया गया. मिषाएल क्राउटब्लाटर की टीम ने सारे उपकरण लगा दिए हैं. उन्हें उम्मीद है कि चट्टान के गिरने से पहले वे घाटी में रहने वाले लोगों और सैलानियों को चेतावनी दे पाएंगे.